[आदित्य हृदयम्] ᐈ Aditya Hrudayam Stotram Lyrics In Hindi/Sanskrit With PDF & Meaning

Jai Surya Dev (जय सूर्य देव). Aditya Hrudayam is the stotra of Lord Surya Dev (The Sun). Reading and reciting Aditya Hrudayam Stotram is the best way to worship Divine Lord Surya.

This is the stotram of Victory and success. The person who reads and recites Aditya Hrudayam every single day gets all the blessings and success in his/her life by lord Surya himself.

So we have available Aditya Hrudayam Hindi text in a clear format so that the person who reads it will not face any problem while reading this stotram .

Aditya Hrudayam Stotram Lyrics In Hindi/Sanskrit

ध्यानम्

नमस्सवित्रे जगदेक चक्षुसे
जगत्प्रसूति स्थिति नाशहेतवे
त्रयीमयाय त्रिगुणात्म धारिणे
विरिञ्चि नारायण शङ्करात्मने

ततो युद्ध परिश्रान्तं समरे चिन्तया स्थितम् |
रावणं चाग्रतो दृष्ट्वा युद्धाय समुपस्थितम् ‖ 1 ‖

दैवतैश्च समागम्य द्रष्टुमभ्यागतो रणम् |
उपागम्या ब्रवीद्रामम् अगस्त्यो भगवान् ऋषिः ‖ 2 ‖

राम राम महाबाहो शृणु गुह्यं सनातनम् |
येन सर्वानरीन् वत्स समरे विजयिष्यसि ‖ 3 ‖

आदित्य हृदयं पुण्यं सर्वशत्रु विनाशनम् |
जयावहं जपेन्नित्यं अक्षय्यं परमं शिवम् ‖ 4 ‖

सर्वमङ्गळ माङ्गळ्यं सर्व पाप प्रणाशनम् |
चिन्ताशोक प्रशमनं आयुर्वर्धन मुत्तमम् ‖ 5 ‖

रश्मिमन्तं समुद्यन्तं देवासुर नमस्कृतम् |
पूजयस्व विवस्वन्तं भास्करं भुवनेश्वरम् ‖ 6 ‖

सर्वदेवात्मको ह्येष तेजस्वी रश्मिभावनः |
एष देवासुर गणान् लोकान् पाति गभस्तिभिः ‖ 7 ‖

एष ब्रह्मा च विष्णुश्च शिवः स्कन्दः प्रजापतिः |
महेन्द्रो धनदः कालो यमः सोमो ह्यपां पतिः ‖ 8 ‖

पितरो वसवः साध्या ह्यश्विनौ मरुतो मनुः |
वायुर्वह्निः प्रजाप्राणः ऋतुकर्ता प्रभाकरः ‖ 9 ‖

आदित्यः सविता सूर्यः खगः पूषा गभस्तिमान् |
सुवर्णसदृशो भानुः हिरण्यरेता दिवाकरः ‖ 10 ‖

हरिदश्वः सहस्रार्चिः सप्तसप्ति-र्मरीचिमान् |
तिमिरोन्मथनः शम्भुः त्वष्टा मार्ताण्डकोंऽशुमान् ‖ 11 ‖

हिरण्यगर्भः शिशिरः तपनो भास्करो रविः |
अग्निगर्भोऽदितेः पुत्रः शङ्खः शिशिरनाशनः ‖ 12 ‖

व्योमनाथ स्तमोभेदी ऋग्यजुःसाम-पारगः |
घनवृष्टि रपां मित्रो विन्ध्यवीथी प्लवङ्गमः ‖ 13 ‖

आतपी मण्डली मृत्युः पिङ्गळः सर्वतापनः |
कविर्विश्वो महातेजा रक्तः सर्वभवोद्भवः ‖ 14 ‖

नक्षत्र ग्रह ताराणाम् अधिपो विश्वभावनः |
तेजसामपि तेजस्वी द्वादशात्मन्-नमोऽस्तु ते ‖ 15 ‖

नमः पूर्वाय गिरये पश्चिमायाद्रये नमः |
ज्योतिर्गणानां पतये दिनाधिपतये नमः ‖ 16 ‖

जयाय जयभद्राय हर्यश्वाय नमो नमः |
नमो नमः सहस्रांशो आदित्याय नमो नमः ‖ 17 ‖

नम उग्राय वीराय सारङ्गाय नमो नमः |
नमः पद्मप्रबोधाय मार्ताण्डाय नमो नमः ‖ 18 ‖

ब्रह्मेशानाच्युतेशाय सूर्यायादित्य-वर्चसे |
भास्वते सर्वभक्षाय रौद्राय वपुषे नमः ‖ 19 ‖

तमोघ्नाय हिमघ्नाय शत्रुघ्नाया मितात्मने |
कृतघ्नघ्नाय देवाय ज्योतिषां पतये नमः ‖ 20 ‖

तप्त चामीकराभाय वह्नये विश्वकर्मणे |
नमस्तमोऽभि निघ्नाय रुचये लोकसाक्षिणे ‖ 21 ‖

नाशयत्येष वै भूतं तदेव सृजति प्रभुः |
पायत्येष तपत्येष वर्षत्येष गभस्तिभिः ‖ 22 ‖

एष सुप्तेषु जागर्ति भूतेषु परिनिष्ठितः |
एष एवाग्निहोत्रं च फलं चैवाग्नि होत्रिणाम् ‖ 23 ‖

वेदाश्च क्रतवश्चैव क्रतूनां फलमेव च |
यानि कृत्यानि लोकेषु सर्व एष रविः प्रभुः ‖ 24 ‖

फलश्रुतिः

एन मापत्सु कृच्छ्रेषु कान्तारेषु भयेषु च |
कीर्तयन् पुरुषः कश्चिन्-नावशीदति राघव ‖ 25 ‖

पूजयस्वैन मेकाग्रो देवदेवं जगत्पतिम् |
एतत् त्रिगुणितं जप्त्वा युद्धेषु विजयिष्यसि ‖ 26 ‖

अस्मिन् क्षणे महाबाहो रावणं त्वं वधिष्यसि |
एवमुक्त्वा तदागस्त्यो जगाम च यथागतम् ‖ 27 ‖

एतच्छ्रुत्वा महातेजाः नष्टशोकोऽभवत्-तदा |
धारयामास सुप्रीतो राघवः प्रयतात्मवान् ‖ 28 ‖

आदित्यं प्रेक्ष्य जप्त्वा तु परं हर्षमवाप्तवान् |
त्रिराचम्य शुचिर्भूत्वा धनुरादाय वीर्यवान् ‖ 29 ‖

रावणं प्रेक्ष्य हृष्टात्मा युद्धाय समुपागमत् |
सर्वयत्नेन महता वधे तस्य धृतोऽभवत् ‖ 30 ‖

अध रविरवदन्-निरीक्ष्य रामं मुदितमनाः परमं प्रहृष्यमाणः |
निशिचरपति सङ्क्षयं विदित्वा सुरगण मध्यगतो वचस्त्वरेति ‖ 31 ‖

इत्यार्षे श्रीमद्रामायणे वाल्मिकीये आदिकाव्ये युद्दकाण्डे सप्तोत्तर शततमः सर्गः ‖

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Aditya Hrudayam Stotram Lyrics In Hindi/Sanskrit With Meaning

ध्यानम्

नमस्सवित्रे जगदेक चक्षुसे
जगत्प्रसूति स्थिति नाशहेतवे
त्रयीमयाय त्रिगुणात्म धारिणे
विरिञ्चि नारायण शङ्करात्मने

ततो युद्ध परिश्रान्तं समरे चिन्तया स्थितम् |
रावणं चाग्रतो दृष्ट्वा युद्धाय समुपस्थितम् ‖ 1 ‖

अर्थ: उधर श्रीरामचन्द्रजी युद्ध से थककर चिन्ता करते हुए रणभूमि में खड़े हुए थे। इतने में रावण भी युद्ध के लिए उनके सामने उपस्थित हो गया।

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दैवतैश्च समागम्य द्रष्टुमभ्यागतो रणम् |
उपागम्या ब्रवीद्रामम् अगस्त्यो भगवान् ऋषिः ‖ 2 ‖

अर्थ: यह देखकर भगवान् अगस्त्य मुनि, जो देवताओं के साथ युद्ध देखने के लिए आये थे, श्रीराम के पास जाकर बोले।

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राम राम महाबाहो शृणु गुह्यं सनातनम् |
येन सर्वानरीन् वत्स समरे विजयिष्यसि ‖ 3 ‖

अर्थ: सबके हृदय में रमण करनेवाले महाबाहो राम! यह सनातन गोपनीय स्तोत्र सुनो। वत्स! इसके जप से तुम युद्ध में अपने समस्त शत्रुओं पर विजय पा जाओगे।

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आदित्य हृदयं पुण्यं सर्वशत्रु विनाशनम् |
जयावहं जपेन्नित्यं अक्षय्यं परमं शिवम् ‖ 4 ‖

अर्थ: यह परम पवित्र और सम्पूर्ण शत्रुओं का नाश करनेवाला है। इसके जप से सदा विजय की प्राप्ति होती है। यह नित्य अक्षय और परम कल्याणमय स्तोत्र है।

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सर्वमङ्गळ माङ्गळ्यं सर्व पाप प्रणाशनम् |
चिन्ताशोक प्रशमनं आयुर्वर्धन मुत्तमम् ‖ 5 ‖

अर्थ: सम्पूर्ण मंगलों का भी मंगल है। इससे सब पापों का नाश हो जाता है। यह चिन्ता और शोक को मिटाने तथा आयु का बढ़ाने वाला उत्तम साधन है।

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रश्मिमन्तं समुद्यन्तं देवासुर नमस्कृतम् |
पूजयस्व विवस्वन्तं भास्करं भुवनेश्वरम् ‖ 6 ‖

अर्थ: भगवान् सूर्य अपनी अनंत किरणों से सुशोभित हैं। ये नित्य उदय होनेवाले (समुद्यन्), देवता और असुरों से नमस्कृत, विवस्वान् नाम से प्रसिद्ध, प्रभा का विस्तार करनेवाले (भास्कर) और संसार के स्वामी (भुवनेश्वर) हैं। तुम इनका [रश्मिमन्ते नमः, समुद्यन्ते नमः, देवासुरनमस्कृताय नमः, विवस्वते नमः, भास्कराय नमः, भुवनेश्वराय नमः इन नाम-मन्त्रों द्वारा] पूजन करो।

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सर्वदेवात्मको ह्येष तेजस्वी रश्मिभावनः |
एष देवासुर गणान् लोकान् पाति गभस्तिभिः ‖ 7 ‖

अर्थ: सम्पूर्ण देवता इन्हीं के स्वरूप हैं। ये तेज की राशि तथा अपनी किरणों से जगत् को सत्ता एवं स्फूर्ति प्रदान करनेवाले हैं। ये अपनी रश्मियों का प्रसार करके देवता और असुरोंसहित समस्त लोकों का पालन करते हैं।

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एष ब्रह्मा च विष्णुश्च शिवः स्कन्दः प्रजापतिः |
महेन्द्रो धनदः कालो यमः सोमो ह्यपां पतिः ‖ 8 ‖

अर्थ: ये ही ब्रह्मा, विष्णु, शिव, स्कन्द, प्रजापति, इन्द्र, कुबेर, काल, यम, चन्द्रमा, वरुण हैं।

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पितरो वसवः साध्या ह्यश्विनौ मरुतो मनुः |
वायुर्वह्निः प्रजाप्राणः ऋतुकर्ता प्रभाकरः ‖ 9 ‖

अर्थ: पितर, वसु, साध्य, अश्विनीकुमार, मरुद्गण, मनु, वायु, अग्नि, प्रजा, प्राण, ऋतुओं को प्रकट करनेवाले तथा प्रकाश के पुञ्ज हैं।

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आदित्यः सविता सूर्यः खगः पूषा गभस्तिमान् |
सुवर्णसदृशो भानुः हिरण्यरेता दिवाकरः ‖ 10 ‖

अर्थ: इनके नाम हैं आदित्य (अदितिपुत्र), सविता (जगत् को उत्पन्न करनेवाले), सूर्य (सर्वव्यापक), खग (आकाश में विचरण करनेवाले), पूषा (पोषण करनेवाले), गभस्तिमान (प्रकाशमान), सुवर्णसदृश्य (सुवर्ण के समान), भानु (प्रकाशक), हिरण्यरेता (ब्रह्मांड कि उत्पत्ति के बीज), दिवाकर (रात्रि का अन्धकार दूर करके दिन का प्रकाश फैलाने वाले),

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हरिदश्वः सहस्रार्चिः सप्तसप्ति-र्मरीचिमान् |
तिमिरोन्मथनः शम्भुः त्वष्टा मार्ताण्डकोंऽशुमान् ‖ 11 ‖

अर्थ: हरिदश्व (दिशाओं में व्यापक/हरे रंग के घोड़ेवाले), सहस्रार्चि (हज़ारों किरणों से सुशोभित), सप्तसप्ति (सात घोड़ोंवाले), मरीचिमान् (किरणों से सुशोभित), तिमिरोमन्थन (अन्धकार का नाश करने वाले), शम्भू (कल्याण के उद्गम स्थान), त्वष्टा (भक्तों का दुःख दूर करनेवाले/जगत् का संहार करनेवाले), मार्तण्डक (ब्रह्माण्ड को जीवन प्रदान करने वाले), अंशुमान् (किरणों को धारण करनेवाले)

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हिरण्यगर्भः शिशिरः तपनो भास्करो रविः |
अग्निगर्भोऽदितेः पुत्रः शङ्खः शिशिरनाशनः ‖ 12 ‖

अर्थ: हिरण्यगर्भ (ब्रह्मा), शिशिर (स्वभाव से ही सुख प्रदान करनेवाले), तपन (गर्मी पैदा करने वाले), अहस्कर (दिनकर), रवि (स्तुति के पात), अग्निगर्भ (अग्नि को गर्भ में धारण करनेवाले), अदितिपुत्र, शंख (आनन्दस्वरूप एवं व्यापक), शिशिरनाशन (शीत का नाश करने वाले)

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व्योमनाथ स्तमोभेदी ऋग्यजुःसाम-पारगः |
घनवृष्टि रपां मित्रो विन्ध्यवीथी प्लवङ्गमः ‖ 13 ‖

अर्थ: व्योमनाथ (आकाश के स्वामी), तमोभेदी (अन्धकार का भेदन करनेवाले), ऋग्वेद, यजुर्वेद और सामवेद के पारगामी, घनवृष्टि (घनी वृष्टि के कारण), अपां मित्र (जल को उत्पन्न करनेवाले), विन्ध्यवीथिप्लवंगम (आकाश में तीव्र वेग से चलनेवाले)

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आतपी मण्डली मृत्युः पिङ्गळः सर्वतापनः |
कविर्विश्वो महातेजा रक्तः सर्वभवोद्भवः ‖ 14 ‖

अर्थ: आतपी (धूप उत्पन्न करनेवाले), मंडली (किरण समूह को उत्पन्न करनेवाले), मृत्यु (मौत के कारण), पिंगल (भूरे रंगवाले), सर्वतापन (सबको ताप देनेवाले), कवि (त्रिकालदर्शी), विश्व (सर्वस्वरूप), महातेजस्वी, रक्त (लाल रंगवाले), सर्वभवोद्भव (सबकी उत्पत्ति के कारण)

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नक्षत्र ग्रह ताराणाम् अधिपो विश्वभावनः |
तेजसामपि तेजस्वी द्वादशात्मन्-नमोऽस्तु ते ‖ 15 ‖

अर्थ: नक्षत्र, ग्रह और तारों के स्वामी, विश्वभावन (जगत की रक्षा करनेवाले), तेजस्वियों में भी अति तेजस्वी और द्वादशात्मा (बारह स्वरूपों में अभिव्यक्त हैं) । इन सभी नामों से प्रसिद्ध सूर्यदेव! आपको नमस्कार है।

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नमः पूर्वाय गिरये पश्चिमायाद्रये नमः |
ज्योतिर्गणानां पतये दिनाधिपतये नमः ‖ 16 ‖

अर्थ: पूर्वगिरी-उदयाचल तथा पश्चिमगिरी-अस्ताचल के रूप में आपको नमस्कार है। ज्योतिर्गणों (ग्रहों और तारों) के स्वामी तथा दिन के अधिपति आपको प्रणाम है।

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जयाय जयभद्राय हर्यश्वाय नमो नमः |
नमो नमः सहस्रांशो आदित्याय नमो नमः ‖ 17 ‖

अर्थ: आप जयस्वरूप तथा विजय और कल्याण के दाता हैं। आपके रथ में हरे रंग के घोड़े जुते रहते हैं। आपको बारम्बार नमस्कार है। सहस्रों किरणों से सुशोभित भगवान् सूर्य! आपको बारम्बार प्रणाम है। आप अदिति के पुत्र होने के कारण आदित्य नाम से भी प्रसिद्ध हैं, आपको नमस्कार है।

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नम उग्राय वीराय सारङ्गाय नमो नमः |
नमः पद्मप्रबोधाय मार्ताण्डाय नमो नमः ‖ 18 ‖

अर्थ: उग्र (अभक्तों के लिये भयंकर), वीर (शक्ति सम्पन्न) और सारंग (शीघ्रगामी) सूर्यदेव को नमस्कार है। कमलों को विकसित करनेवाले प्रचण्ड तेजधारी मार्तण्ड को प्रणाम है।

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ब्रह्मेशानाच्युतेशाय सूर्यायादित्य-वर्चसे |
भास्वते सर्वभक्षाय रौद्राय वपुषे नमः ‖ 19 ‖

अर्थ: आप ब्रह्मा, शिव और विष्णु के भी स्वामी है। सूर आपकी संज्ञा है। यह सूर्यमंडल आपका ही तेज है। आप प्रकाश से परिपूर्ण हैं। सबको स्वाहा कर देनेवाली अग्नि आपका ही स्वरुप है। आप रौद्ररूप धारण करनेवाले हैं। आपको नमस्कार है।

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तमोघ्नाय हिमघ्नाय शत्रुघ्नाया मितात्मने |
कृतघ्नघ्नाय देवाय ज्योतिषां पतये नमः ‖ 20 ‖

अर्थ: आप अज्ञान और अन्धकार के नाशक, जड़ता एवं शीत के निवारक तथा शत्रु का नाश करनेवाले हैं। आपका स्वरूप अप्रमेय (अनन्त) है। आप कृतघ्नों का नाश करनेवाले, सम्पूर्ण ज्योतियों के स्वामी और देवस्वरूप हैं। आपको नमस्कार है।

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तप्त चामीकराभाय वह्नये विश्वकर्मणे |
नमस्तमोऽभि निघ्नाय रुचये लोकसाक्षिणे ‖ 21 ‖

अर्थ: आपकी प्रभा तपाये हुए सुवर्ण के समान है, आप हरि (अज्ञान का हरण करनेवाले) और विश्वकर्मा (संसार के रचयिता) हैं। तम के नाशक, प्रकाशस्वरूप और जगत् के साक्षी हैं। आपको नमस्कार है।

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नाशयत्येष वै भूतं तदेव सृजति प्रभुः |
पायत्येष तपत्येष वर्षत्येष गभस्तिभिः ‖ 22 ‖

अर्थ: ये भगवान् सूर्य ही सम्पूर्ण भूतों का संहार, सृष्टि और पालन करते हैं। ये अपनी किरणों से गर्मी पहुँचाते और वर्षा करते हैं।

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एष सुप्तेषु जागर्ति भूतेषु परिनिष्ठितः |
एष एवाग्निहोत्रं च फलं चैवाग्नि होत्रिणाम् ‖ 23 ‖

अर्थ: ये सब भूतों में अन्तर्यामी रूप से  स्थित होकर उनके सो जाने पर भी जागते रहते हैं। ये ही अग्निहोत्र (अग्नि में हवन) तथा अग्निहोत्री (हवन करनेवाले) पुरुषों को मिलनेवाले फल हैं।

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वेदाश्च क्रतवश्चैव क्रतूनां फलमेव च |
यानि कृत्यानि लोकेषु सर्व एष रविः प्रभुः ‖ 24 ‖

अर्थ: देवता, यज्ञ और यज्ञों के फल भी ये ही हैं । सम्पूर्ण लोकों में जितनी क्रियाएँ होती हैं, उन सबका फल देने में ये ही पूर्ण समर्थ हैं।

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फलश्रुतिः

एन मापत्सु कृच्छ्रेषु कान्तारेषु भयेषु च |
कीर्तयन् पुरुषः कश्चिन्-नावशीदति राघव ‖ 25 ‖

अर्थ: राघव! विपत्ति में, कष्ट में, दुर्गम मार्ग में तथा और किसी भय के अवसर पर जो कोई पुरुष इन सूर्यदेव का कीर्तन करता है, उसे दुःख नहीं भोगना पड़ता।

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पूजयस्वैन मेकाग्रो देवदेवं जगत्पतिम् |
एतत् त्रिगुणितं जप्त्वा युद्धेषु विजयिष्यसि ‖ 26 ‖

अर्थ: इसलिए तुम एकाग्रचित होकर इन देवाधिदेव जगदीश्वर की पूजा करो। इस आदित्यहृदय का तीन बार जप करने से तुम युद्ध में विजय पाओगे।

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अस्मिन् क्षणे महाबाहो रावणं त्वं वधिष्यसि |
एवमुक्त्वा तदागस्त्यो जगाम च यथागतम् ‖ 27 ‖

अर्थ: महाबाहो! तुम इसी क्षण रावण का वध कर सकोगे। यह कहकर अगस्त्यजी जैसे आये थे वैसे ही चले गए।

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एतच्छ्रुत्वा महातेजाः नष्टशोकोऽभवत्-तदा |
धारयामास सुप्रीतो राघवः प्रयतात्मवान् ‖ 28 ‖

अर्थ: उनका उपदेश सुनकर महातेजस्वी श्रीरामचन्द्रजी का शोक दूर हो गया। उन्होंने प्रसन्न होकर शुद्धचित्त से आदित्यहृदय को धारण किया।

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आदित्यं प्रेक्ष्य जप्त्वा तु परं हर्षमवाप्तवान् |
त्रिराचम्य शुचिर्भूत्वा धनुरादाय वीर्यवान् ‖ 29 ‖

अर्थ: और तीन बार आचमन करके शुद्ध हो भगवान् सूर्य की और देखते हुए इसका तीन बार जप किया। इससे उन्हें बड़ा हर्ष हुआ।

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रावणं प्रेक्ष्य हृष्टात्मा युद्धाय समुपागमत् |
सर्वयत्नेन महता वधे तस्य धृतोऽभवत् ‖ 30 ‖

अर्थ: फिर परम पराक्रमी रघुनाथ जी ने धनुष उठाकर रावण की और देखा और उत्साहपूर्वक विजय पाने के लिए वे आगे बढ़े। उन्होंने पूरा प्रयत्न करके रावण के वध का निश्चय किया।

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अध रविरवदन्-निरीक्ष्य रामं मुदितमनाः परमं प्रहृष्यमाणः |
निशिचरपति सङ्क्षयं विदित्वा सुरगण मध्यगतो वचस्त्वरेति ‖ 31 ‖

अर्थ: उस समय देवताओं के मध्य में खड़े हुए भगवान् सूर्य ने प्रसन्न होकर श्रीरामचन्द्रजी की और देखा और निशाचरराज रावण के विनाश का समय निकट जानकर हर्षपूर्वक कहा– “रघुनन्दन! अब जल्दी करो।”

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इत्यार्षे श्रीमद्रामायणे वाल्मिकीये आदिकाव्ये युद्दकाण्डे सप्तोत्तर शततमः सर्गः ‖

अर्थ: इस प्रकार भगवान् सूर्य कि प्रशंसा में कहा गया और वाल्मीकि रामायण के युद्ध काण्ड में वर्णित यह आदित्य हृदयम स्तोत्र सम्पन्न होता है।

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Also Read:

As you have completed reading Aditya Hrudayam stotram, now you must be feeling blessed by the Divine Lord Surya. According to the Hindu Mythology before the battle with the demon king Ravana, Agastya Rishi told Lord Ram about the procedure of Aditya Stotram to defeat his enemy Ravana.

And this time we have written Aditya Hrudayam Stotram lyrics in Hindi/Sanskrit but if you want to read this stotram in any other language then we have already published it in multiple languages.

And for your ease we also provide Aditya Hrudayam Stotram Hindi lyrics in PDF and mp3 audio format with its meaning.

Blessings: After Reading Aditya Hrudayam may Lord Surya Bless you with all the happiness, success, prosperity, and victory in your life. Whatever you do in your life you will get succeed in that thing whether it is Job, education, etc.

And if you want your family and friends to also get all the blessings from Lord Surya then you must share it with them.

**जय सूर्य देव**

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